इब्राहीम(अ.स) और उनकी क़ौम, नस्लों को बरकत (तौरैत : ख़िल्क़त 12:1-7)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

इब्राहीम(अ.स) और उनकी क़ौम, नस्लों को बरकत

तौरैत : ख़िल्क़त 12:1-7

अल्लाह ताअला ने इब्राहीम(अ.स)[a] से कहा, “तुम अपने मुल्क और अपने लोगों को और अपने ख़ानदान को छोड़ो और उस मुल्क में जाओ जो मैं तुम्हें दिखाऊँगा।(1) मैं तुमसे एक अज़ीम जमात को बनाऊँगा। मैं तुमको बरकत दूँगा और तुम्हारे नाम को मशहूर कर दूँगा। तुम्हारी वजह से ज़मीन के बहुत सारे लोगों को बरकत मिलेगी।(2) मैं उन लोगों को बरकत दूँगा जो तुमको इज़्ज़त देंगे और मैं उन लोगों पर लानत भेजूँगा जो तुम्हारी बेइज़्ज़ती करेंगे। तुम से ही इस सरज़मीन के सारे ख़ानदानों पर बरकत होगी।”(3)

इब्राहीम(अ.स) ने अल्लाह ताअला के हुक्म के मुताबिक़ हारान शहर को छोड़ा।(4) लूत(अ.स) भी उनके साथ गए। इब्राहीम(अ.स) पचहत्तर साल के थे जब उन्होंने शहर हारान को छोड़ा था। उन्होंने अपनी बीवी सारह अपने भतीजे और अपनी सारी जमा की हुई चीज़ों को लिया और उन सारे लोगों को भी साथ लिया जो उन्हें हारान की ज़मीन पर मिले थे। तब वो और उनके घर वाले हारान को छोड़ कर कन्नान की ज़मीन पर पहुंचे। वो लोग बहुत लम्बा सफ़र तय कर के शेह्कम पहुंचे।(5) वो आगे सफ़र करते हुए एक बड़े शाहबलूत के पेड़ के पास जा पहुंचे जो मूरे नाम की जगह में था। कन्नान के लोग उस वक़्त उस ज़मीन पर रहते थे।(6) तब अल्लाह ताअला ने इब्राहीम(अ.स) से बात करी और कहा, “मैं ये ज़मीन तुम्हारी नस्ल को दे रहा हूँ।” तो इब्राहीम(अ.स) ने वहाँ एक चबूतरा बनाया, क्यूँकि अल्लाह ताअला ने उनसे उस जगह पर बात करी थी।(7)