नेक बनो (इंजील : कुलुस्सियों 3:1-17)

बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम

नेक बनो

इंजील : कुलुस्सियों 3:1-17

तुमको भी ईसा(अ.स) के साथ नई ज़िंदगी अता की गई है, तो तुम भी जन्नत की चीज़ों की ख़्वाहिश करते रहा करो। उसी जगह पर ईसा(अ.स) अल्लाह के पास मौजूद हैं।(1) उन चीज़ों से अपना दिल लगाओ जो जन्नत में हैं ना कि इस दुनिया की चीज़ों से।(2) तुम्हारा पुराना वजूद जो गुनाहगार था वो मर गया है, और तुम्हें नई ज़िंदगी ईसा(अ.स) से मिली, जिनके पास अल्लाह ताअला की क़ुदरत है।(3) ईसा(अ.स) हमारी ज़िंदगी हैं, और वो जब दोबारा आएंगे, तुम भी उनकी अज़मत में हिस्सेदार होगे।(4)

इसलिए सोचो कि तुम्हारा जिस्म इस दुनिया की शैतानी ख़्वाहिशों के लिए मर चुका है। तो तुम लोग शैतानी ख़्वाहिशात से, बदकारी से, ज़िना से दूर हटो, गंदे काम और बुरी ख़्वाहिशात रखना छोड़ दो। हमेशा ज़्यादा की ख़्वाहिश मत करो और लालच छोड़ दो, क्यूँकि ये बुतों के पूजने जैसा काम है।(5) इन्हीं बुरे कामों की वजह से अल्लाह ताअला का अज़ाब उन पर नाज़िल होता है, जो कहना नहीं मानते।(6) पहले तुम लोग भी इसी तरह से ज़िंदगी गुज़ारते थे और बुरे काम अंजाम देते थे।(7) लेकिन, अब तुम को इन सब चीज़ों को अपनी ज़िंदगी से बाहर निकालो: गुस्सा, झुंझलाहट, दूसरों को नुक़सान पहुंचाना, या उनके राज़ खोलना। जब तुम बात करो तो गंदे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल करना छोड़ दो।(8) एक दूसरे से झूट मत बोलो क्यूँकि अब तुम अपने पुराने वजूद को निकाल कर फेंक चुके हो जो तुम्हारे बुरे कामों की वजह से बर्बाद हो चुका था।(9) और अपने नए वजूद को अमल में लाओ, जो तुमने अल्लाह ताअला की हक़ीक़त को समझ कर हासिल किया है। इस तरह तुम उसके जैसे हो जाओगे।(10) इस नई ज़िंदगी में यहूदी और ग़ैर-यहूदी लोगों में कोई फ़र्क़ नहीं है। उन लोगों में भी कोई फ़र्क नहीं है जिन्होंने ख़तना करायी या नहीं करायी, या वो लोग जो दूसरी जगाहों से आए हैं। ग़ुलाम और आज़ाद लोगों में कोई फ़र्क नहीं, क्यूँकि सबसे ज़रूरी बात ये है कि ईसा(अ.स) हर एक के लिए हैं।(11)

अल्लाह ताअला ने तुम्हें चुना है, ताकि तुम उसकी नेक क़ौम कहलाओ, क्यूँकि वो तुमसे मोहब्बत करता है। इसलिए हमेशा दूसरों पर रहम करो, मेहरबानी करो, नरमी से पेश आओ, शरीफ़ बनो, और सब्र करो।(12) एक दूसरे पर ग़ुस्सा ना करो, बल्कि एक दूसरे को माफ़ कर दो। जो भी किसी दूसरे की शिकायत करता है तो उसे माफ़ कर देना चाहिए। तुम दूसरों को उसी तरह से माफ़ कर दो कि जैसे अल्लाह ताअला तुम्हें करता है।(13) ये सब करो, लेकिन एक चीज़ बहुत ज़रूरी है; और वो है एक दूसरे से प्यार। प्यार ही वो चीज़ है जो तुमको एक दूसरे से जोड़ कर रखता है।(14) तुम अपने दिलों में अल-मसीह ईसा की मोहब्बत रखो। हक़ीक़त में, अल्लाह ताअला ने तुम को एक बना कर भेजा है, तो तुम उसका शुक्रिया अदा करते रहा करो।(15)

ईसा(अ.स) की तालीम का असर तुम पर हमेशा रहना चाहिए। तुम अक़्लमंदी से दूसरों की ग़लतियों को सुधारो और एक दूसरे को ज़बूर शरीफ़ की तालीम सिखाओ। तुम अल्लाह रब्बुल करीम का दिल से शुक्रिया अदा करो और उसकी हम्द-ओ-सना करो।(16) तुम जो भी करो या बोलो, उसमें ईसा(अ.स) की तालीम नज़र आनी चाहिए और उसके ज़रिए अल्लाह ताअला का शुक्र अदा करो।(17)