बिस्मिल्लाह-हिर-रहमानिर-रहीम
अल्लाह ताअला की पनाह
ज़बूर 91
जो लोग अल्लाह रब्बुल अज़ीम की हिफ़ाज़त में रहते हैं,
तो वो लोग उसकी सल्तनत में सुकून से हैं।(1)
मैं अल्लाह से कहूँगा, “तू मेरी सलामती और पनाह की जगह है।
तू ही मेरा रब है, और मैं तुझ पर ही भरोसा करता हूँ।’’(2)
अल्लाह रब्बुल करीम तुम्हें छुपी हुई चालों से और
जानलेवा बीमारियों से महफ़ूज़ रखेगा।(3)
वो तुम्हारी हिफ़ाज़त एक चिड़िया की तरह करेगा जो अपने पर
फैलाकर अपने बच्चों की हिफ़ाज़त करती हैं।
उसका कलाम तुम्हारी ढाल के जैसा है।(4)
तुम रातों के ख़तरों से और
दिन में तीर के हमलों से नहीं डरोगे।(5)
तुम उस बिमारियों से नहीं डरोगे जो अंधेरे में आती हैं।
या उस मर्ज़ से जो दिन में हमला करता है।(6)
तुम्हारी तरफ़ से एक हज़ार लोग मर जायें,
या दस हज़ार लोग तुम्हारे बराबर में ही क्यूँ ना मरें
लेकिन तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।(7)
तुम सिर्फ़ देखोगे की क्या हो रहा है।
तुम गुनहगारों को सज़ा मिलते देखोगे।(8)
अल्लाह ही तुम्हारी हिफ़ाज़त करने वाला है।
तुम अल्लाह रब्बुल अज़ीम को अपनी सलामती की जगह बना चुके हो।(9)
ना कोई बुरी चीज़ तुम्हारे ऊपर आएगी।
और न कोई मुसीबत तुम्हरे घर की तरफ़ जाएगी।(10)
वो अपने फ़रिश्ते तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिए भेजता है।
तुम जहाँ भी जाते हो, वो तुम्हारी देखभाल करते हैं।(11)
इससे पहले तुम्हारे पैर पत्थर से टकराएं।
वो तुमको अपने हाथों से संभाल लेंगे।(12)
तुम ताक़तवर शेरों और ज़हरीले साँपों को अपने पैरों से कुचलोगे।
तुम इन शेरों और ज़हरीले साँपों पर चलोगे।(13)
अल्लहा ताअला का इरशाद है, “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो मैं उसे बचा लूँगा।
जो मुझे जानते हैं उन्हें महफ़ूज़ रखूँगा।(14)
“वो मुझे पुकारेंगें, और मैं उन्हें जवाब दूँगा मैं मुसीबत में उनके साथ रहूँगा।
मैं उन्हें बचाऊँगा और इज़्ज़त बख़शूँगा।(15)
“मैं उन्हें लम्बी उम्र अता करूँगा।